भारत में जैविक खेती : एक नई क्रांति की ओर


भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां खेती न केवल लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना का आधार भी है । पिछले कुछ दशकों में हरित क्रांति के माध्यम से भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि की, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी सामने आए । रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित किया, स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ाईं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया ।
 इन्हीं समस्याओं का समाधान देने के लिए जैविक खेती एक आशाजनक विकल्प के रूप में उभर रही है । यह खेती न केवल टिकाऊ है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, मानव स्वास्थ्य और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भी लाभकारी है ।

जैविक खेती का अर्थ

जैविक खेती एक ऐसी कृषि पद्धति है, जिसमें सिंथेटिक रसायनों, कीटनाशकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों( GMOs) का उपयोग नहीं किया जाता । इसके स्थान पर जैविक खाद, हरी खाद, जैविक कीटनाशक और पारंपरिक कृषि तकनीकों का उपयोग किया जाता है । जैविक खेती में गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं, तथा प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशकों द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है । 

जैविक खेती का क्षेत्रफल एवं आवश्यकता

पिछले कई वर्षों से खेती में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है । इसका मुख्य कारण खेती में प्रयोग होने वाले रसायन, इसमें लागत भी बढ़ रही है और भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे हैं जो काफी नुकसान भरे हो सकते हैं । रासायनिक खेती से प्रकृति में और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट भी आई है ।
 किसानों की पैदावार का अधिकतर भाग खेती में प्रयोग होने वाले उर्वरकों और कीटनाशकों पर ही खर्च हो जाता है । यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे जैविक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए ।
जैविक तरीके से उगाये गए अनाज में कई सारे खनिज तत्व उपस्थित होते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होते हैं जबकि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते हैं । रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में काफी कमी आती है, जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन भी बिगड़ जाता है । इस घटती हुई मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए आज के समय खेती में जैविक खाद का उपयोग जरूरी हो गया है । 

जैविक खेती के सिद्धांत एवं मांग

 जैविक खेती के चार सिद्धांत हैं ।
1. खेतों में कोई जुताई नहीं करना है यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी पलटना । धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है ।
2. किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए ।
3. निराई गुड़ाई न की जाए, न तो हल से और न ही शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा । खरपतवार मिट्टी की उर्वरता बढाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं । बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए ।
4. रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है । अधिक जुताई तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में नई नई बीमारियां तथा कीट असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई । छेड़छाड़ न करने से प्राकृतिक संतुलन बिल्कुल सही रहता है ।

जैविक खेती का महत्व

 •    यह प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए टिकाऊ खेती का मॉडल प्रस्तुत करती है ।
 •    रसायनों के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को रोकती है ।
 •    जैव विविधता को संरक्षित करती है और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखती है ।
 •    जैविक उत्पाद मानव स्वास्थ्य के लिए अधिक सुरक्षित माने जाते हैं ।

भारत में जैविक खेती का इतिहास और विकास                  

भारत में जैविक खेती कोई नई अवधारणा नहीं है । प्राचीन काल में भारतीय कृषि पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित थी । किसान गोबर, गोमूत्र, फसल अवशेष और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग खाद के रूप में करते थे ।
90 के दशक में हरित क्रांति के बाद, रासायनिक खेती ने तेजी से स्थान लिया । हालांकि, 1990 के दशक में जब रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव सामने आने लगे — जैसे कि जल प्रदूषण, मिट्टी की उर्वरता का ह्रास, और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं — तब जैविक खेती की ओर ध्यान गया ।
 भारत सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, जैसे
 • परंपरागत कृषि विकास योजना( PKVY)
 • राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना( NPOF)
 • उत्तर- पूर्व क्षेत्र के लिए जैविक खेती प्रोत्साहन योजना
 वर्तमान में भारत जैविक खेती के क्षेत्र में अग्रणी देशों में से एक है ।

जैविक खेती के लाभ

 जैविक खेती के अनेक लाभ हैं, जो इसे किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए उपयुक्त बनाते हैं ।
1. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना जैविक खाद और जैव उर्वरकों का उपयोग मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाए रखता है और उसकी गुणवत्ता को सुधरता है ।
2. पर्यावरण संरक्षण रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग न होने से जैविक खेती जल, वायु और मिट्टी के प्रदूषण को कम करती है ।
3. स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद जैविक फसलों में हानिकारक रसायन और कीटनाशकों के अवशेष नहीं होते, जिससे यह खाने में सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं ।
4. कृषि लागत में कमी किसानों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अधिक खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती । जैविक खेती के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया जाता है ।
5. बाजार में मांग जैविक उत्पादों की मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेजी से बढ़ रही है । इस वजह से किसानों को जैविक उत्पादों से अधिक आय हो सकती है ।
6. जल संरक्षण जैविक खेती में ऐसी तकनीकों का उपयोग होता है, जो पानी की बचत करती हैं ।
7. पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन यह खेती कीटों, पक्षियों, और मिट्टी में रहने वाले जीवों को संरक्षित करती है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है ।

जैविक खेती के नुकसान

जैविक खेती के कई लाभ हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं, जिन पर विचार करना आवश्यक है।
1. कम उत्पादन : रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती में उत्पादन कम हो सकता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होने की संभावना रहती है।
2. अधिक श्रम और समय : जैविक खेती में ज्यादा मेहनत और समय लगता है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक विधियों का उपयोग होता है।
3. प्रमाणीकरण की कठिनाई : जैविक उत्पादों को प्रमाणीकरण (Certification) के लिए लंबी और जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमें समय और धन दोनों की आवश्यकता होती है।
4. बाजार की कमी : ग्रामीण क्षेत्रों में जैविक उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध नहीं हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
5. खाद की उपलब्धता : कई क्षेत्रों में जैविक खाद आसानी से उपलब्ध नहीं होती है, जिससे खेती करना कठिन हो जाता है।
6. शिक्षा और जागरूकता की कमी : कई किसान जैविक खेती की तकनीकों और इसके दीर्घकालिक लाभों के प्रति जागरूक नहीं हैं।

सरकार की भूमिका और योजनाएं

भारत सरकार और राज्य सरकारें जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। इनमें शामिल हैं :
•    परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) : किसानों को जैविक खेती की ओर प्रोत्साहित करने और वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना।
•    राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना (NPOF) : जैविक खाद और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए।
•    उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए जैविक खेती प्रोत्साहन योजना : पूर्वोत्तर भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने पर केंद्रित।
सरकार किसानों को तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण और वित्तीय अनुदान प्रदान कर रही है, ताकि वे जैविक खेती को अपनाने में सक्षम हो सकें।

भविष्य की संभावनाएं

जैविक खेती भारत के कृषि क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। यदि सही रणनीतियों और नीतियों को लागू किया जाए, तो भारत न केवल अपनी आंतरिक मांग को पूरा कर सकता है, बल्कि जैविक उत्पादों का प्रमुख निर्यातक बन सकता है।
इसके अलावा, जैविक खेती किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें पर्यावरणीय स्थिरता के साथ जोड़ने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है।

निष्कर्ष

जैविक खेती भारत के कृषि क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। यह केवल खेती की एक पद्धति नहीं, बल्कि स्वस्थ, टिकाऊ और समृद्ध भविष्य का एक सपना है।
हालांकि इसमें कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन जागरूकता, तकनीकी सहयोग और सरकारी समर्थन से इनका समाधान किया जा सकता है। किसानों को यह समझने की आवश्यकता है कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि उनके आर्थिक और सामाजिक जीवन के लिए भी लाभकारी है।
जैविक खेती अपनाएं, स्वस्थ जीवन और स्थायी विकास की ओर बढ़ें!

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