पशुपतिनाथ मंदिर : जहाँ भगवान शिव की पूजा के बाद नंदी के दर्शन वर्जित हैं

 


नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, वरन् यह शिवभक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। इसकी प्राचीन परंपराएँ, धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक विरासत इसे दुनियाभर में विशेष बनाती हैं। यदि आप भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं, तो यह मंदिर आपकी यात्रा सूची में अवश्य होना चाहिए। 

भारत और विश्वभर में भगवान शिव के हजारों मंदिर और तीर्थस्थल हैं, जिनका अपना विशेष महत्व और चमत्कार है। इन्हीं में से एक है नेपाल में स्थित प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि यहां आज भी भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं। 

मंदिर का स्थान और महत्व
पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 3 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में देवपाटन गाँव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है और इसे नेपाल में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यूनेस्को ने इसे विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया है।
हर साल हजारों श्रद्धालु इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं, और विशेष रूप से महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। 

किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेज़ 13वीं शताब्दी के ही हैं। इस मंदिर की कई नकलों का भी निर्माण हुआ है जिनमें भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपतेंद्र मल्ल ने 1697 में प्रदान किया।

नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड पर आधारित स्थानीय किंवदंती के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए, जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है। भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए।

भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर की किंवदंती के अनुसार पाण्डवों को स्वर्गप्रयाण के समय भैंसे के स्वरूप में शिव के दर्शन हुए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली थी। ऐसे में उस स्थान पर स्थापित उनका स्वरूप केदारनाथ कहलाया, तथा जहाँ पर धरती से बाहर उनका मुख प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ कहलाया।

भारतीय पुजारियों की परंपरा
पशुपतिनाथ मंदिर में पुजारियों की नियुक्ति की परंपरा विशेष है। मंदिर में चार पुजारी और एक मुख्य पुजारी हमेशा दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों में से चुने जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाती है।
माना जाता है कि यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से केदारनाथ का आधा भाग है, जिससे इसकी आध्यात्मिक शक्ति और महत्व और भी बढ़ जाता है।

शिवलिंग और पांच मुखों की विशेषता
पशुपतिनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग बेहद अद्भुत और चमत्कारी है। इसे पारस पत्थर से बना हुआ माना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके स्पर्श से लोहा भी सोने में बदल सकता है।
इस शिवलिंग के पाँच मुख हैं, जो अलग-अलग दिशाओं में स्थित हैं। प्रत्येक मुख का विशेष नाम और महत्व है:  
• अघोर मुख : दक्षिण दिशा की ओर।
• सद्योजात मुख : पश्चिम दिशा की ओर।
• तत्वपुरुष मुख : पूर्व दिशा की ओर।
• अर्द्धनारीश्वर मुख : उत्तर दिशा की ओर।
ईशान मुख : ऊपर की ओर, जो निराकार और श्रेष्ठतम मुख माना जाता है।  

नंदी के दर्शन क्यों वर्जित हैं?
पशुपतिनाथ मंदिर को लेकर एक अद्भुत मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है कि यदि आपने भगवान पशुपति के दर्शन कर लिए, तो नंदी के दर्शन नहीं करने चाहिए। ऐसा करने पर यह विश्वास है कि व्यक्ति को अगले जन्म में पशु के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। 

आर्य घाट का महत्व
मंदिर के बाहर आर्य घाट नामक एक विशेष घाट है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के अंदर केवल इसी घाट का पवित्र जल ले जाने की अनुमति है। किसी अन्य स्थान का जल मंदिर में ले जाना वर्जित है।

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