होलिका दहन हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहार होली का एक अभिन्न अंग है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन की परंपरा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन की परंपरा का संबंध प्रह्लाद और होलिका की कथा से है। यह कथा भागवत पुराण, विष्णु पुराण और नारद पुराण में विस्तार से वर्णित है। कथा के अनुसार, प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे, जबकि उनके पिता हिरण्यकश्यपु स्वयं को भगवान मानते थे। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन वह सफल नहीं हुआ। अंत में, उसने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस घटना को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस कथा का उल्लेख भागवत पुराण में मिलता है। एक संस्कृत श्लोक के अनुसार :
हिरण्यकशिपोः पुत्रः प्रह्लादो नाम विश्रुतः।
स दैत्येन्द्रस्य पुत्रोऽपि हरौ भक्तिं चकार ह। (भागवत पुराण 7/4/1)
अर्थात हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रह्लाद विख्यात था। वह दैत्यराज का पुत्र होने के बावजूद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा।
होलिका दहन का शास्त्रीय विधान
होलिका दहन का शास्त्रीय विधान बहुत ही स्पष्ट और नियमबद्ध है। इसे सही तरीके से करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है :
• होलिका की तैयारी
- होलिका दहन से कुछ दिन पहले लकड़ी, उपले, और अन्य जलने योग्य सामग्री को एकत्र किया जाता है।
- इन सामग्रियों को एक स्थान पर इकट्ठा करके होलिका का ढेर बनाया जाता है। इस ढेर को "होलिका’ कहा जाता है।
- होलिका के ढेर में गोबर के उपले और नई फसल की बालियाँ भी रखी जाती हैं, जो समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक मानी जाती हैं।
- होलिका के ढेर के ऊपर होलिका की प्रतिमा या पुतला रखा जाता है, जिसे बाद में जलाया जाता है।
• होलिका दहन का समय
- होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की रात को किया जाता है।
- शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन का सही समय प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय) माना जाता है।
- होलिका दहन से पहले विधि-विधान से पूजन किया जाता है।
- इस संदर्भ में नारद पुराण में एक श्लोक मिलता है :
फाल्गुन्यां पौर्णमास्यां तु होलिका दहनं चरेत्।
सर्वपापप्रशमनं सर्वसम्पत्करं परम्।। (नारद पुराण)
अर्थात फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन करना चाहिए। यह सभी पापों का नाश करने वाला और समृद्धि प्रदान करने वाला होता है।
• पूजन विधि
- होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा की जाती है। इस पूजा में गंध, फूल, अक्षत, और मिठाई का उपयोग किया जाता है।
- होलिका के ढेर के चारों ओर परिक्रमा की जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
- होलिका दहन के समय भगवान विष्णु और प्रह्लाद की कथा का पाठ किया जाता है।
- पूजन के दौरान निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है :
असृक्पिच्छमलं दुष्टं होलिके त्वं दहेहि तत्।
प्रह्लादस्यार्थिता देवि त्वं कुरुष्व ममापि तत्।।
अर्थात हे होलिका! आप दुष्टता, पाप और अशुद्धता को जलाएं। जैसे आपने प्रह्लाद की रक्षा की, वैसे ही मेरी भी रक्षा करें।
• होलिका का दहन
- पूजन के बाद होलिका के ढेर को आग लगाई जाती है।
- होलिका दहन के समय लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि बुराई नष्ट हो और अच्छाई की जीत हो।
- होलिका दहन के बाद लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाई बांटते हैं।

• होलिका की राख का महत्व
- होलिका दहन के बाद बची राख को शुभ माना जाता है। इसे घर ले जाकर तिलक लगाया जाता है।
- होलिका की राख को शरीर पर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता आती है।
इस संदर्भ में स्कन्द पुराण में कहा गया है :
होलिकायाः समुद्भूतं भस्म लब्ध्वा विशेषतः।
तिलकं कुरुते यस्तु स स्यात्पापविवर्जितः।। (स्कन्द पुराण)
अर्थात होलिका की राख को प्राप्त करके जो व्यक्ति तिलक लगाता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
होलिका दहन का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
होलिका दहन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। इस अवसर पर लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं और समाज में प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। होलिका दहन के बाद अगले दिन रंगों का त्योहार "धुलंडी’ मनाया जाता है, जो खुशियों और उल्लास का प्रतीक है।
होलिका दहन का आध्यात्मिक महत्व
होलिका दहन का आध्यात्मिक महत्व भी बहुत गहरा है। यह हमें यह संदेश देता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में सत्य और धर्म की ही जीत होती है। होलिका दहन के माध्यम से हम अपने जीवन से अंधकार (अज्ञान) को दूर करने और प्रकाश (ज्ञान) की ओर बढ़ने का संकल्प लेते हैं।
निष्कर्ष
होलिका दहन का शास्त्रीय विधान हिंदू धर्म में गहराई से जुड़ा हुआ है। यह न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। होलिका दहन के माध्यम से हम अपने जीवन से अंधकार को दूर करने और प्रकाश की ओर बढ़ने का संकल्प लेते हैं। संस्कृत श्लोकों के माध्यम से इस परंपरा की सटीकता और महत्व को सिद्ध किया जा सकता है।
Impressive analysis!
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