माँ बगलामुखी मंदिर, बनखंडी : एक दिव्य सिद्धपीठ

सनातन धर्म में अनेक ऐसे सिद्धपीठ हैं, जहाँ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, जप-तप और साधना करने से मनुष्य के जन्म-जन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता है। ऐसे दिव्य स्थलों की यात्रा हर किसी को सहजता से नहीं मिलती, बल्कि केवल उन्हीं को यह सौभाग्य प्राप्त होता है, जिनके पुण्य जागृत होते हैं। ऐसा ही एक दिव्य तीर्थस्थल हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के कोटला कस्बे में स्थित 'बगलामुखी मंदिर, बनखंडी' है।

माँ बगलामुखी: शक्तिपीठों में विशिष्ट स्थान

यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है और हिंदू धर्म की दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या माँ बगलामुखी को समर्पित है। माँ बगलामुखी का विशेष संबंध पीले रंग से है, इसलिए यहाँ माँ के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन सहित सभी वस्तुएँ पीले रंग की होती हैं। माँ बगलामुखी, जिन्हें 'पीताम्बरा' भी कहा जाता है, यहाँ स्वर्ण सिंहासन पर विराजित हैं, जिसके खंभे विभिन्न रत्नों से अलंकृत हैं। उनकी तीन नेत्रों वाली दिव्य प्रतिमा भक्तों को परम ज्ञान प्रदान करने का प्रतीक मानी जाती है।

पवित्र अग्निकुंड और भगवान राम की पूजा

मंदिर परिसर में एक विशेष हवनकुंड स्थित है, जिसे 'पवित्र अग्निकुंड' कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने यहीं पर माँ बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए हवन और अनुष्ठान किए थे। प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें आशीर्वाद स्वरूप दिव्य ब्रह्मास्त्र प्रदान किया था।

माँ बगलामुखी की उत्पत्ति की पौराणिक कथा

माँ बगलामुखी की उत्पत्ति से जुड़ी एक रोचक कथा यह भी है कि पितामह ब्रह्मा की आराधना के फलस्वरूप वे प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि एक बार एक दैत्य ने ब्रह्माजी के समस्त पुराणों की चोरी कर उन्हें पाताल में छिपा दिया। तब माँ बगलामुखी ने बगुले का रूप धारण कर उस दैत्य का वध किया और ब्रह्माजी को उनके पुराण लौटाए।

राम और रावण दोनों ने की माँ बगलामुखी की साधना

त्रेतायुग में रावण ने माँ बगलामुखी को अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजित किया था और उनकी साधना से अनेक शक्तियाँ प्राप्त की थीं। जब यह बात भगवान राम को ज्ञात हुई, तो उन्होंने भी माँ की आराधना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। बनखंडी स्थित यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने एक ही रात में इस मंदिर की स्थापना की थी। अर्जुन और भीम ने महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ विशेष अनुष्ठान किए थे।

नवरात्रि में उमड़ती है भक्तों की भीड़

नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में अपार श्रद्धालु पहुँचते हैं और माँ बगलामुखी की कृपा प्राप्त करते हैं। बनखंडी स्थित यह मंदिर दतिया और नलखेड़ा स्थित बगलामुखी मंदिरों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ विशेष रूप से घरेलू कलह, अदालती मामलों, भूमि-संपत्ति विवादों और ग्रहदोष शांति के लिए यज्ञ किए जाते हैं। मंदिर में वाक्सिद्धि और शत्रुनाशिनी यज्ञ का भी विशेष महत्व है, जिसमें लाल मिर्च की आहुति देकर शत्रु बाधा निवारण किया जाता है।

माँ बगलामुखी का आशीर्वाद : शक्ति और सुरक्षा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए बनखंडी स्थित इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की थी। माँ बगलामुखी ने उन्हें ब्रह्मास्त्र प्रदान किया था, जिसने राम की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह दिव्य अस्त्र अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक था और आज भी भक्तों को अद्भुत शक्ति प्रदान करता है। माना जाता है कि माँ बगलामुखी की आराधना करने से साधक की शक्तियाँ बढ़ती हैं और उसके विरोधी निर्बल हो जाते हैं। देवी की यह शक्ति रक्षक और प्रतिकूल परिस्थितियों के विरुद्ध एक अद्वितीय शक्ति के रूप में मानी जाती है।

कैसे पहुँचें बनखंडी बगलामुखी मंदिर?

बनखंडी स्थित माँ बगलामुखी मंदिर काँगड़ा शहर से लगभग 26 कि.मी. दूर है। यहाँ तक पहुँचने के लिए रेल, बस और हवाई मार्ग की सुविधा उपलब्ध है। बस मार्ग से ऊना से इसकी दूरी लगभग 80 कि.मी. है, जबकि निकटतम हवाई अड्डा काँगड़ा है, जहाँ से बस द्वारा मंदिर पहुँचा जा सकता है। रेलमार्ग से पठानकोट से काँगड़ा अथवा रानीताल तक रेल सेवा उपलब्ध है।

माँ बगलामुखी मंदिर : भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाला सिद्धपीठ

माँ बगलामुखी का यह मंदिर अपने चमत्कारी प्रभाव और अद्वितीय शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहाँ माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं, उन्हें निश्चित रूप से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।


 

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