भवन के सौंदर्य में पेड़-पौधों का महत्व

 

बाग-बगीचे और पेड़-पौधे किसी भी भवन की सुंदरता बढ़ाने के साथ-साथ वहाँ रहने वालों को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। चाहे घर हो, मंदिर, विद्यालय, कार्यालय, चिकित्सालय, या होटल-हरियाली हर जगह आँखों को सुकून और मन को प्रसन्नता देती है। पेड़-पौधे न केवल वायु को शुद्ध करते हैं, बल्कि स्वस्थ, सकारात्मक और स्फूर्तिदायक वातावरण भी प्रदान करते हैं।

भारतीय समाज में पेड़-पौधों की मान्यताएँ  

भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों के प्रति विशेष आस्था है। जैसे पीपल के पेड़ को तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का निवासस्थान माना जाता है, और यह इकलौता पेड़ है जो रात में भी ऑक्सीजन छोड़ता है। वहीं, कुछ वृक्ष जैसे बड़ को भूत-प्रेत का निवास स्थल कहा गया है। वास्तुशास्त्र में इन मान्यताओं का उल्लेख मिलता है, और इनके आधार पर पेड़-पौधों की शुभ-अशुभता का निर्धारण किया गया है।

पेड़-पौधों का वैज्ञानिक महत्व  

वैज्ञानिक दृष्टि से सभी पेड़-पौधे दिन में प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) के माध्यम से ऑक्सीजन छोड़ते और कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करते हैं। हालाँकि, रात में ये प्रक्रिया उलटी हो जाती है। पीपल और बड़ जैसे पेड़ घने और बड़ी पत्तियों वाले होते हैं। इनकी जड़ें पानी के लिए दूर-दूर तक फैलती हैं, जिससे आसपास के भवनों की नींव को नुकसान पहुँचता है। इन वृक्षों की पत्तियों के चौड़े आकार के कारण ये सुबह भरपूर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। यही कारण है कि भारत के लगभग हर मंदिर में पीपल या बड़ का पेड़ पाया जाता है, और इनकी पूजा के दौरान सुबह का समय चुना जाता है ताकि लोग इनकी छांव में अधिक समय बिताएँ और शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त करें।

भवन, हरियाली और पर्यावरण का संतुलन

भवनों के आसपास हरियाली, बाग-बगीचे और पेड़-पौधे न केवल सौंदर्य में वृद्धि करते हैं, बल्कि वहां रहने वालों को मानसिक शांति और प्रसन्नता भी प्रदान करते हैं। चाहे वह घर हो, मंदिर, विद्यालय, कार्यालय, अस्पताल, या होटल, हरियाली हमेशा मन को सुकून देती है। साथ ही, पेड़-पौधे वायु को शुद्ध कर स्वस्थ और ऊर्जावान वातावरण प्रदान करते हैं। भारतीय परंपरा में पेड़-पौधों का विशेष महत्व है। पीपल को 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास स्थल माना जाता है और इसे एकमात्र ऐसा वृक्ष बताया गया है जो रात में भी ऑक्सीजन छोड़ता है। वहीं, कुछ पेड़ों के बारे में यह मान्यता है कि वे अशुभ हैं, जैसे फलदार वृक्ष घर में लगाने से नकारात्मकता आती है या बेल का उगना शुभ नहीं माना जाता। यह मान्यताएँ सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक आधारों पर विकसित हुई हैं।  

धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ

भारतीय समाज में कई पेड़-पौधों को शुभ और अशुभ मान्यताओं से जोड़ा गया है। पीपल और वटवृक्ष की पूजा इसलिए प्रचलित हुई ताकि लोग इनके नीचे अधिक समय बिताकर शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त कर सकें। इसी तरह, तुलसी को घर में लगाने का निर्देश दिया गया क्योंकि यह वातावरण को शुद्ध करती है और औषधीय गुणों से भरपूर है।  
फलदार वृक्षों को घर में न लगाने की मान्यता के पीछे सुरक्षा कारण हैं। इनसे भवन को नुकसान हो सकता है, और फलों के लालच में बच्चे चोटिल हो सकते हैं। वास्तुशास्त्र में बिना वैज्ञानिक आधार के इन पेड़ों को अशुभ बताया गया है, जिससे लोग पर्यावरण के प्रति गलत धारणाएँ बना लेते हैं।

बेल और अन्य पौधों की उपयोगिता

बेल को घर के लिए अशुभ इसलिए माना गया क्योंकि यह दीवारों पर चढ़ते हुए जहरीले कीड़ों और सांपों को घर में प्रवेश का रास्ता देती है। हालांकि, मनी प्लांट को शुभ माना गया है क्योंकि इसे घर के अंदर आसानी से उगाया जा सकता है और यह कोई खतरा उत्पन्न नहीं करता। दूध वाले वृक्ष भी अशुभ माने जाते हैं, क्योंकि उनका दूध अक्सर जहरीला होता है और आँखों या त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है।  

सही दिशा और पेड़ों का स्थान

भवन निर्माण के समय पेड़-पौधों को सही दिशा में लगाना बेहद आवश्यक है। उत्तर, पूर्व और ईशान दिशा में छोटे पौधे लगाने चाहिए ताकि सुबह की सूर्य किरणें बाधित न हों। वहीं, दक्षिण, नैऋत्य और पश्चिम में बड़े वृक्ष लगाकर गर्मी और दोपहर की हानिकारक किरणों से बचा जा सकता है।  

वास्तु और पर्यावरण का समन्वय

अगर वास्तु के सही दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए पेड़-पौधे लगाए जाएँ, तो भवन लंबे समय तक जीवंत और सुंदर रह सकते हैं। इसके विपरीत, पेड़ों की गलत दिशा या अत्यधिक छायादार वृक्षों के कारण भवन के निवासियों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।  

शुभ-अशुभ वृक्षों की मान्यताएँ  

धार्मिक ग्रंथों और वास्तुशास्त्र में कई वृक्षों को शुभ और अशुभ घोषित किया गया है। उदाहरण के लिए:  
- शुभ वृक्ष : तुलसी, आँवला, पीपल, बड़।  
- अशुभ वृक्ष : कैक्टस, बेर, बबूल।  
तुलसी और आँवला जैसे पेड़ों को स्वास्थ्यवर्धक और वातावरण शुद्ध करने वाला माना गया है। तुलसी की पूजा धार्मिक आस्था के साथ-साथ इसके औषधीय गुणों को ध्यान में रखकर की जाती है।  

निष्कर्ष

प्राचीन धार्मिक और वास्तुशास्त्र में पेड़-पौधों को शुभ-अशुभ मानने के पीछे कई बार वैज्ञानिक आधार छिपा होता है। सही जानकारी और दृष्टिकोण के साथ अगर हम पर्यावरण और भवन निर्माण का संतुलन बनाए रखें, तो न केवल हमारी प्रकृति सुरक्षित रहेगी, बल्कि हमारा जीवन भी अधिक सुखमय और स्वस्थ होगा। पेड़-पौधों का सही स्थान और उनकी देखभाल पर्यावरण को संतुलित रखती है और मानव जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बनाती है। परंपराओं और वैज्ञानिक तथ्यों का समन्वय कर हमें पौधारोपण करना चाहिए, ताकि न केवल भवन, बल्कि पूरा वातावरण हरियाली से समृद्ध हो सके।

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