सिर पर दशनाी पगड़ी, गेरुआ लुंगी–कुर्ता और पगड़ी पर गुलदान में मोरपंखों का गुच्छा। इसके साथ ही पगड़ी पर लगे हैं तांबे और पीतल की घंटियों की तरह दिखने वाले आभूषण। महाकुंभ नगर में आए अखाड़ों में साधुओं का एक जत्था निरंतर भजन-कीर्तन करते हुए पहुंचता है। हाथों में ढफली, मंजीरा, ढोलक...एकदम अलग अंदाज। इनके भजन-कीर्तन मनोरंजन के लिए नहीं होते, कल्पवास में बैठे साधुओं से भिक्षा मांगने के लिए होते हैं। इन साधुओं की पहचान है- जोगी जंगम साधु। सिर पर मोरपंख, शिव का नाम, बिंदी और कानों में पार्वती के कुंडल। इसी श्रृंगार के साथ ये साधु-संतों के पास पहुंचते हैं। ये बस सुर साधक हैं, जो अपने ईष्ट और उसके उपासक अखाड़े की महिमा का गान करते हैं। ऐसे में इन्हें अखाड़ों के सिंगर भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि पार्वती से शादी के
बाद जब शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा को दान देना चाहा, तो उन्होंने दान लेने से
मना कर दिया। इससे नाराज होकर भगवान शिव ने क्रोध में अपनी जांघ पीट दी। इससे साधुओं
का एक संप्रदाय पैदा हुआ। इसका नाम पड़ा- जंगम साधु अर्थात जांघ से जन्मा साधु।
जंगम साधुओं सम्प्रदाय
जंगम या जंगमारू, धार्मिक भिक्षुओं का एक
शैव संप्रदाय है, जो हिंदू शैव परंपरा के पुजारी (गुरु) मान जाते हैं। ये वीरशैव संप्रदाय
के गुरु हैं और बसव पुराण में शिव के शिष्यों के रूप में वर्णित होते हैं। "जंगम"
शब्द का अर्थ "चलता हुआ लिंग’ है। जंगम वे होते हैं जो आगमिक ज्ञान से संपन्न
हैं और जिन्होंने हिंदू समाज में अच्छे चरित्र निर्माण की प्रथाओं को फैलाने का संकल्प
लिया है। जंगम समुदाय पौरोहित्य और धार्मिक उपदेशों में संलग्न होता है और विभिन्न
राजाओं के दरबारों में सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है। ये शुद्ध शाकाहारी होते
हैं और मांसाहारी खाद्य पदार्थों से दूर रहते हैं।
मोरपंख है इनकी खास पहचान

जंगम साधुओं की टोली अपनी विशिष्ट और आकर्षक
वेशभूषा के कारण श्रद्धालुओं के बीच हमेशा से चर्चा का विषय रही है। इनकी पोशाक में
देवी–देवताअेां के अनेक
प्रतीक समाहित होते हैं, जो इनकी धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं। जंगम साधुओं की पगड़ी
पर लगा हुआ बड़ा मोरपंख सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। मोरपंख
की शोभा और इसका आध्यात्मिक महत्त्व साधुओं की भक्ति को और गहरा बनाता है। पगड़ी के
अगले हिस्से में सिल्वर धातु के नागराज भगवान शिव के प्रतीक हैं।
नाग देवता को भगवान शिव का परम भक्त माना
जाता है और यह साधुओं की शिवभक्ति के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। जंगम साधु घण्टी
और बाली भी पहनते हैं, जो माता पार्वती के आभूषणों का प्रतीक मानी जाती है। यह उनकी
शक्ति और सौन्दर्य का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार जंगम साधुओं की वेशभूषा में
भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती सहित पांच देवी–देवताओं के प्रतीक
समाहित होते हैं। यह उनकी बहुमुखी आस्था और धार्मिक समृद्धि को दर्शाता है।
इतिहास
जंगम ऋषियों का मानना है कि वे शिव के शरीर
के एक हिस्से से उत्पन्न हुए हैं। हिंदू धार्मिक कथानक के अनुसार, शिव ने ब्रह्मा और
विष्णु को कुछ दान देने का प्रयास किया था, परंतु उनके मना करने पर उन्होंने जंगम ऋषियों
की रचना की। जंगम ऋषि विभिन्न संतों को शिव और पार्वती के पवित्र मिलन की कथा समझाने
के लिए यात्रा करते हैं।
अगर हम विभिन्न क्षेत्रों की बात करें, तो
जंगम हिमालय और महाराष्ट्र में ‘जंगम साधु', मध्यप्रदेश और गुजरात में ‘जंगम अय्या'
और कर्नाटक में ‘स्वामी टाटा' के नाम से जाने जाते हैं। उन्हें तमिलनाडु और केरल में
‘जंगम वीरशैव पंडारम', हरियाणा में ‘जंगम जोगी' और आंध्र प्रदेश में ‘जंगम देव' के
रूप में भी पहचान प्राप्त है।
कर्नाटक के जंगम आचार्य
कर्नाटक में जंगम वीरशैववाद का महत्वपूर्ण
हिस्सा हैं। यहाँ, वीर शैव जंगम (श्रीशैलम और केदारनाथ के पुजारी) एक अलग जाति का गठन
करते हैं और अपने जीवन को लिंगायतवाद में परिवर्तित करते हैं। जंगम लिंगायत समुदाय
का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो विभिन्न सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं।
तमिलनाडु और केरल में पंडारम
पंडारम या थंबीरन नामक जंगम समुदाय की पहचान
तमिल शब्द से है, जिसका अर्थ ‘बहुमूल्य रत्नों का भंडार' है। प्राचीन काल में, इन्हें
शिव मंदिरों और महलों के रत्नों का संरक्षण करने का कार्य सौंपा गया था। विवाह के दौरान,
मुख्य समारोह ‘लिंग पूजा' और ‘कुला देवा पोंगल' होते हैं।
उत्तर प्रदेश में जंगमवाड़ी मठ
काशी का जंगमवाड़ी मठ, उत्तर प्रदेश का एक
प्राचीन मठ है। इसका संबंध मुगलों के मेहमानों से भी था, खासकर अकबर और जहाँगीर से।
जंगम का मतलब है ‘शिव का ज्ञाता' और यह वीरशैव धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
दान-दक्षिणा लेकर करते हैं अपना जीवन यापन
जंगम साधु भगवान शिव के उपासक होते हैं।
ये सिर्फ साधुओं से ही दान स्वीकार करते हैं, जिसके लिए अखाड़ों में जाकर साधु-संतों
को शिव कथा, संगीत आदि सुनाते हैं। इसके साथ ही दान-दक्षिणा से ही ये लोग अपना जीवन
यापन करते हैं। ऐसा कहते हैं कि हर कोई जंगम साधु नहीं बन सकता है, इसका अधिकार सिर्फ
इनके पुत्रों को ही होता है। ऐसा कहा जाता है कि इनकी हर पीढ़ी से कोई एक सदस्य साधु
बनता है। इससे इन साधुओं का प्रभाव सदैव के लिए रहता है।
कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते
जंगम साधु शैव सम्प्रदाय से जुड़े अनूठे साधु
होते हैं, जो अपने विशेष संगीत और भक्ति के लिए जाने जाते हैं। वे अद्वितीय वाद्य यंत्रों
का उपयोग करते हुए भगवान् शिव के जीवन और उनकी लीलाओं पर आधारित विशेष गीत गाते हैं।
जंगम साधुओं का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की महिमा का गुणगान करना और उनकी भक्ति में
लीन रहना होता है। वे भिक्षाटन नहीं करते वरन् लोग स्वेच्छा से उन्हें दान देते हैं।
जंगम साधु को दान में जो कुछ मिलता है, वे उसी से अपना जीवनयापन करते हैं।
जंगम साधु एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा
करते रहते हैं और कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रुकते हैं। वे हमेशा भगवान् शिव की भक्ति
में लीन रहते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बढ़ते रहते हैं। जंगम साधुओं के संगीत
और भजनों की आवाज सुनकर नागा संन्यासी भी उनके पास आ जाते हैं।
निष्कर्ष
जंगम समुदाय एक समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। उनकी आदर्शों और परंपराओं ने भारतीय धर्म और समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। जंगम का जीवन, ज्ञान और ध्यान के माध्यम से समाज को प्रेरित करने के लिए समर्पित है, जिससे वे अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को भी प्रभावित कर सकें।
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