
पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया में रह रहीं अफगान लड़कियों ने वर्षों बाद क्रिकेट खेला। तालिबान ने सत्ता पर काबिज होते ही उनके खेलने और उनकी क्रिकेट टीम पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद क्रिकेट खेलने वाली लड़कियां किसी तरह भागकर ऑस्ट्रेलिया पहुंच गई थीं। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से वे बीते सप्ताह अपना पहला मैच क्रिकेट विदाउट बार्डर्स टीम से खेलने में समर्थ हो सकीं। तालिबान मामूली मानव मूल्यों से भी रहित हैं। वे अपने यहां महिलाओं का जीना दूभर किए हुए हैं। चिंता और दुख की बात यह है कि दुनिया भर का स्त्रीवादी आंदोलन उनकी स्थिति पर लगभग खामोश है। हमारे यहां भी उनके पक्ष में आवाज नहीं उठ रही है। मानवाधिकारों का चैंपियन बनने वाला अमेरिका भी खामोश है, जबकि उसकी कमजोरी के कारण ही तालिबान अफगानिस्तान में काबिज हुए थे। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका को फिर से ग्रेट बनाने की बातें कर रहे हैं।
अफगानिस्तान की महिलाएँ दशकों से सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संघर्षों का सामना कर रही हैं। विशेष रूप से तालिबान शासन के तहत, उनके अधिकारों और स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंध लगाए गए, जिससे वे एक ‘अंधकार युग’ में जीवन जीने के लिए मजबूर हो गईं। अफगानिस्तान का इतिहास कई उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है, लेकिन 1990 के दशक में तालिबान के उदय के साथ ही देश ने एक ऐसे अंधकार युग में प्रवेश किया, जिसने विशेष रूप से महिलाओं के जीवन को गहराई से प्रभावित किया। यह कालखंड अफगान महिलाओं के लिए अत्याचार, दमन और अधिकारों के हनन का समय था।
तालिबान का उदय और महिलाओं पर प्रभाव
1996 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया और एक कट्टर इस्लामी शासन स्थापित किया। तालिबान के शासनकाल को अक्सर ‘अंधकार युग’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस दौरान मानवाधिकारों, विशेषकर महिलाओं के अधिकारों, का व्यापक स्तर पर हनन हुआ और महिलाओं के अधिकारों में गम्भीर रूप से कटौती हुई। तालिबान ने अपने कट्टरपंथी विचारों के तहत महिलाओं को समाज में उनकी भूमिका से वंचित कर दिया और उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया। महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्र आवाजाही के अधिकारों को प्रतिबंधित कर दिया गया।
• 1996 से 2001 के बीच तालिबान के शासन में महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 13% थी, जो कि दुनिया में सबसे कम थी।
• महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर 15% से कम थी, जबकि पुरुषों की भागीदारी दर 80% से अधिक थी।
शिक्षा पर प्रतिबंध
तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से वंचित कर दिया गया। लड़कियों के स्कूल जाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था और महिलाओं को विश्वविद्यालयों में पढ़ने की अनुमति नहीं थी। इसके अलावा महिलाओं को नौकरी करने की भी अनुमति नहीं थी, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता पूरी तरह से समाप्त हो गई। केवल कुछ महिला डॉक्टरों और नर्सों को ही काम करने की अनुमति थी, लेकिन वे भी सख्त पाबंदियों के तहत काम कर सकती थीं। इस दौरान तालिबान सरकार ने लड़कियों की शिक्षा पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। तालिबानी सरकार ने महिलाओं की कक्षा छह के बाद की शिक्षा पर रोक लगा दी। विश्वविद्यालयों में महिलाओं के दाखिले पर प्रतिबंध लगा दिया गया। महिला शिक्षकों और प्रोफेसरों को भी नौकरी से निकाल दिया गया। कई स्कूलों और संस्थानों को या तो बंद कर दिया गया या केवल पुरुष छात्रों के लिए खोल दिया गया। महिलाएँ शिक्षा हासिल करने के लिए गुप्त रूप से ऑनलाइन कक्षाओं और निजी ट्यूशन का सहारा ले रही हैं।
• 2001 तक केवल 5% महिलाओं को ही किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा प्राप्त थी।
• महिलाओं की बेरोजगारी दर 95% से अधिक थी, क्योंकि उन्हें अधिकांश नौकरियों से वंचित कर दिया गया था।
रोजगार के अवसरों पर रोक
तालिबान के शासन में महिलाओं के काम करने के अधिकार पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए।
• महिलाओं को सरकारी नौकरियों से निकाल दिया गया।
• गैर-सरकारी संगठनों (NGO) में काम करने पर भी पाबंदी लगा दी गई।
• केवल स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा क्षेत्रों में महिलाओं को सीमित रूप से काम करने की अनुमति दी गई।
• बहुत सी महिलाओं को घर पर रहकर काम करने के लिए मजबूर कर दिया गया।
• महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी घटकर मात्र 4.8% रह गई है।
पर्दा प्रथा और पहनावे पर सख्त नियम
तालिबान ने महिलाओं के पहनावे पर कठोर नियम लागू किए। महिलाओं को बुरका पहनना अनिवार्य कर दिया गया, जो उनके पूरे शरीर को ढकता था और केवल एक जालीदार खिड़की से देखने की अनुमति देता था। बुरका न पहनने पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाता था। यह नियम महिलाओं की स्वतंत्रता और पहचान को पूरी तरह से दबा देता था।
• तालिबान के शासनकाल में 90% से अधिक महिलाओं को बुरका पहनने के लिए मजबूर किया गया।
• बुरका नहीं पहनने पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने, जेल में डालने, या अन्य दंड देने की घटनाएं आम थीं।
स्वतंत्र आवाजाही पर नियंत्रण
• सार्वजनिक स्थानों पर बुरका अनिवार्य कर दिया गया।
• महिलाओं को पार्क, जिम और अन्य सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
सार्वजनिक जीवन पर प्रतिबंध
तालिबान के शासन में महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह से बाहर कर दिया गया। उन्हें बिना किसी पुरुष रिश्तेदार (महरम) के साथ घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने, बाजार जाने, या सार्वजनिक स्थानों पर जमा होने की भी अनुमति नहीं थी। इससे महिलाओं की गतिशीलता और सामाजिक भागीदारी पूरी तरह से समाप्त हो गई।
• तालिबान शासन के दौरान 85% महिलाओं ने बताया कि उन्हें बिना महरम के घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।
• महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी 2% से भी कम थी।
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में कमी
महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी बेहद सीमित हो गई। चूंकि महिला डॉक्टरों और नर्सों की संख्या कम थी, और पुरुष डॉक्टरों द्वारा महिलाओं का इलाज करना मुश्किल था, इसलिए महिलाओं को अक्सर बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहना पड़ता था। इसके कारण मातृत्व और शिशु मृत्यु दर में भी वृद्धि हुई।
• 2001 तक अफगानिस्तान में मातृ मृत्युदर 1,600 प्रति 100,000 जन्मदर थी, जो दुनिया में सबसे अधिक थी।
• शिशु मृत्युदर 165 प्रति 1,000 जन्मदर थी, जो वैश्विक औसत से कई गुना अधिक थी।
मानसिक और भावनात्मक प्रभाव
तालिबान के शासनकाल में महिलाओं को जो शारीरिक और सामाजिक प्रतिबंध झेलने पड़े, उनका उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। अकेलापन, अवसाद और चिंता जैसी मानसिक समस्याएं आम हो गईं। महिलाओं को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा, जिससे उनकी आत्माएं टूट गईं।
• 2001 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार 70% से अधिक अफगान महिलाओं ने अवसाद और चिंता के लक्षणों की सूचना दी।
• 60 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्हें लगातार भय और असुरक्षा का सामना करना पड़ता था।
2001 के बाद का दौर
2001 में अमेरिका के नेतृत्व में तालिबान शासन के पतन के बाद अफगान महिलाओं को कुछ हद तक राहत मिली। महिलाओं को फिर से शिक्षा और रोजगार के अवसर मिलने लगे, और उन्हें सार्वजनिक जीवन में भाग लेने की अनुमति दी गई। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की स्थिति में बहुत कम बदलाव आया, और वे अभी भी पारंपरिक और सामाजिक बंदिशों से जूझ रही हैं।
• 2020 तक लड़कियों की स्कूल नामांकन दर 40% तक पहुंच गई थी।
• महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर 22% तक बढ़ गई थी।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
2021 में तालिबान के फिर से सत्ता में आने के बाद अफगान महिलाओं के लिए एक बार फिर चिंता का माहौल बन गया है। तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों को सीमित करने वाले कई नियम फिर से लागू कर दिए हैं। लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में भाग लेने से रोका जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान से महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने की मांग की है, लेकिन स्थिति अभी भी अनिश्चित बनी हुई है।
• 2022 में 80% से अधिक लड़कियों को माध्यमिक शिक्षा से वंचित कर दिया गया।
• महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर फिर से 15% से नीचे गिर गई है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
तालिबान के कठोर नियमों के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अफगान महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठा रहा है।
• संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तालिबान सरकार पर प्रतिबंध लगाए हैं।
• कई देशों ने अफगान महिलाओं को शरण देने और छात्रवृत्ति देने की पेशकश की है।
• संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा करने के लिए विशेष सत्र आयोजित किए।
• अमेरिका, कनाडा, यूरोपियन यूनियन और अन्य देशों ने अफगान महिलाओं को सहायता और रोजगार के अवसर प्रदान करने की घोषणा की।
विरोध प्रदर्शन और आंदोलन
• काबुल, हेरात और अन्य प्रमुख शहरों में महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर शिक्षा और रोजगार के अधिकारों की माँग की।
• विरोध करने वाली महिलाओं को गिरफ्तार किया गया, कई को यातनाएँ दी गईं और कुछ को मजबूरन देश छोड़ना पड़ा।
• कुछ महिलाओं ने गुप्त संगठनों का गठन किया, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत हैं।
गुप्त शिक्षा और डिजिटल क्रांति

• कई शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता गुप्त रूप से लड़कियों को शिक्षा देने में लगे हैं।
• ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म महिलाओं के लिए एक नया विकल्प बनकर उभरे हैं।
• कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने डिजिटल माध्यम से अफगान महिलाओं तक शिक्षा पहुँचाने की पहल की है।
निष्कर्ष
अफगान महिलाओं ने तालिबान के शासनकाल में जो कठिनाइयां झेलीं, वे मानवाधिकारों के इतिहास में एक काला अध्याय हैं। उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक भागीदारी से वंचित कर दिया गया, जिससे उनका जीवन अंधकारमय हो गया। हालांकि, अफगान महिलाओं ने हर चुनौती का सामना करते हुए अपनी आवाज उठाई और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया। आज भी वे एक बेहतर भविष्य की उम्मीद में जी रही हैं, लेकिन उनके सामने अभी भी कई चुनौतियां मौजूद हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और स्थानीय स्तर पर महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों की भूमिका अफगान महिलाओं के भविष्य को सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण होगी।
Informative Article
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