
अघोर पूजा भारतीय तांत्रिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह पूजा तंत्र-मंत्र और योग साधना का एक विशिष्ट रूप है, जो शिव के अघोर रूप की उपासना से जुड़ा हुआ है। अघोर पंथ के साधक सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर स्वयं के भीतर अद्वितीय शक्ति और ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यह साधना साधक को सांसारिक मोह-माया से दूर कर आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करती है। ‘अघोर पूजा’ को ‘अघोर साधना’ भी कहा जाता है।
अघोर साधना हिंदू धर्म की एक गूढ़ और रहस्यमयी साधना पद्धति है। यह तांत्रिक और अघोर परंपरा का हिस्सा है, जो शैव और शाक्त मतों से जुड़ी हुई है। अघोर पूजा का उद्देश्य मोक्ष, शक्ति प्राप्ति और अंतिम सत्य की प्राप्ति है। यह साधना अपने अप्रचलित और अजीबोगरीब तरीकों के कारण अक्सर लोगों के लिए रहस्य और आश्चर्य का विषय बनी रहती है। अघोर साधना अघोरियों द्वारा मणिकर्णिका घाट और कामाख्या न्दिर में होती है, लेकिन महाकुम्भ में इस पूजा का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ का पवित्र समय सभी देवी-देवताओं की उपस्थिति के साथ पूर्ण होता है। यही कारण है कि यह समय तंत्र साधना के लिए भी सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि आधी रात का समय तंत्र साधना के लिए अधिक फलदायी होता है, क्योंकि इस समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा अपने चरम पर होती है।
अघोर परंपरा का परिचय
अघोर परंपरा का उद्गम प्राचीन भारत में हुआ और इसे भगवान शिव से जोड़ा जाता है। ‘अघोर’ का अर्थ है ‘जो घोर (भयानक) न हो’, अर्थात जो सहज, सरल और निर्भय हो। अघोर साधना का उद्देश्य भय, मोह, और द्वंद्व से मुक्त होकर परम तत्त्व की प्राप्ति करना होता है। अघोरी साधु पारंपरिक धार्मिक नियमों से परे जाकर आत्मज्ञान और ब्रह्म की अनुभूति की खोज करते हैं।
अघोर पूजा का अर्थ और उत्पत्ति
"अघोर’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों "अ’ (नहीं) और "घोर’ (भयानक) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है "जो भयानक नहीं है’ अथवा "जो सरल और शांत है।’ अघोर साधना का मूल उद्देश्य भौतिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त होकर परम सत्य की प्राप्ति करना है। यह परंपरा भगवान शिव के अघोर रूप से जुड़ी हुई है, जो ’विनाश और पुनर्जन्म के देवता’ हैं। अघोर पूजा की उत्पत्ति प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों और शैव-शाक्त परंपराओं में पाई जाती है। यह साधना मुख्य रूप से नाथ संप्रदाय और कापालिक संप्रदाय से जुड़ी हुई है। अघोरियों का मानना है कि साधना के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर की सभी नकारात्मकताओं को दूर कर सकता है और परमात्मा से एकाकार हो सकता है।
अघोर पूजा की विशेषताएं
• असामान्य साधना पद्धतियाँ
अघोर पूजा में कई ऐसी साधना पद्धतियाँ शामिल हैं, जो सामान्य लोगों के लिए अजीब और भयावह लग सकती हैं। इनमें श्मशान में साधना करना, मुर्दे के साथ बैठना, और मांस-मदिरा का सेवन करना शामिल है। अघोरियों का मानना है कि इन पद्धतियों के माध्यम से वे मृत्यु और जीवन के बीच की सीमा को पार कर सकते हैं और परम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं।
• श्मशान साधना

श्मशान को अघोरियों का मुख्य साधना स्थल माना जाता है। यहाँ वे मृत्यु के साथ साक्षात्कार करते हैं और अपने भीतर के भय को दूर करते हैं। श्मशान में साधना करने का उद्देश्य यह है कि मृत्यु को समझकर जीवन के वास्तविक अर्थ को जाना जा सके। अघोरी साधु प्रायः श्मशान घाट में साधना करते हैं, क्योंकि वे जीवन और मृत्यु को एक समान मानते हैं। वे मानते हैं कि श्मशान ही संसार की नश्वरता को दर्शाता है और यहाँ साधना करने से मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
• मांस और मदिरा का उपयोग
अघोर पूजा में मांस और मदिरा का उपयोग किया जाता है, जो सामान्य धार्मिक प्रथाओं के विपरीत है। अघोरियों का मानना है कि ये पदार्थ उन्हें भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठने में मदद करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं।
• निर्वस्त्रता और सामाजिक मानदंडों से मुक्ति
कुछ अघोर साधक निर्वस्त्र रहते हैं और सामाजिक मानदंडों को तोड़ते हैं। उनका मानना है कि सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर ही वे परम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं।
• मंत्र और तंत्र का प्रयोग
अघोर पूजा में मंत्र, यंत्र और तंत्र का विशेष महत्व है। इनके माध्यम से साधक आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त करते हैं और नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करते हैं।
• तांत्रिक अनुष्ठान
अघोर पूजा में तंत्र-मंत्र का विशेष महत्त्व होता है। यह पूजा गुप्त रूप से की जाती है और इसमें विभिन्न यंत्रों, मंत्रों और विशेष साधनाओं का प्रयोग किया जाता है। यह साधनाएँ शक्ति और सिद्धि प्राप्ति के लिए की जाती हैं।
• शिव की उपासना
अघोर संप्रदाय में भगवान शिव को अघोर रूप में पूजा जाता है। शिव को इस रूप में अनन्त शक्तियों के स्वामी और मोक्षदाता के रूप में मान्यता प्राप्त है।
• निर्विचार और निर्भयता
अघोर पंथ में सामाजिक बंधनों से ऊपर उठकर आत्मज्ञान की खोज की जाती है। साधक को किसी भी प्रकार का भय नहीं होता और वह समाज के सामान्य नियमों से स्वतंत्र होता है।
• भस्म और कपाल धारण
अघोरी साधु शरीर पर शवों की भस्म लगाते हैं और कभी-कभी खोपड़ी (कपाल) का उपयोग पूजा में करते हैं। उनका मानना है कि इससे अहंकार नष्ट होता है और साधक को ब्रह्म की अनुभूति होती है।
• अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति
ऐसा माना जाता है कि अघोरी साधकों को गहन साधना के माध्यम से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जिनमें दूरदृष्टि, इच्छानुसार रूप परिवर्तन और प्राकृतिक शक्तियों पर नियंत्रण शामिल है।
अघोर पूजा का दार्शनिक आधार
अघोर पूजा का दार्शनिक आधार यह है कि संसार में सब कुछ एक ही परम सत्य का प्रतिबिंब है। अघोरियों का मानना है कि अच्छे और बुरे, पवित्र और अपवित्र जैसे भेद केवल मनुष्य के मन की उपज हैं। वे इन भेदों को समाप्त करके परम सत्य को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। अघोर साधना में "निर्विचार" होना और "सहज अवस्था" में रहना महत्वपूर्ण है।
अघोर पूजा और समाज
अघोर पूजा को लेकर समाज में मिश्रित धारणाएँ हैं। कुछ लोग इसे अंधविश्वास और अश्लीलता से जोड़कर देखते हैं, जबकि कुछ इसे गहन आध्यात्मिक साधना मानते हैं। अघोर साधकों को अक्सर समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वे सामाजिक मानदंडों और परंपराओं को चुनौती देते हैं। हालाँकि, अघोर पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह साधना मनुष्य को उसके भीतर की नकारात्मकताओं से मुक्त करती है और उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। अघोरियों का मानना है कि सभी प्राणियों में एक ही दिव्य शक्ति विद्यमान है, और वे इस शक्ति को पहचानने का प्रयास करते हैं।
प्रसिद्ध अघोर साधक
इतिहास में कई प्रसिद्ध अघोर साधक हुए हैं, जिन्होंने इस साधना पद्धति को लोकप्रिय बनाया। इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं :
1. बाबा कीनाराम
बाबा कीनाराम को अघोर परंपरा का सबसे प्रसिद्ध साधक माना जाता है। वे 17वीं शताब्दी में वाराणसी में सक्रिय थे और उन्होंने अघोराचार्य पीठ की स्थापना की। बाबा कीनाराम ने अघोर साधना के माध्यम से कई चामत्कारिक कार्य किए और लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान दिया।
2. बाबा अवधूत भगवान राम
बाबा अवधूत भगवान राम एक अन्य प्रसिद्ध अघोर साधक थे, जिन्होंने अघोर पूजा को आम लोगों के बीच प्रचारित किया। इन्हें आधुनिक अघोरियों में सबसे प्रभावशाली संतों में से एक माना जाता है। उन्होंने अघोर साधना के माध्यम से सामाजिक सेवा को भी बढ़ावा दिया।
3. बाबा बंगाली बाबा
बाबा बंगाली बाबा एक प्रसिद्ध अघोरी संत थे, जो अपनी शक्तियों और साधना के लिए विख्यात रहे।
4. त्रैलंग स्वामी
त्रैलंग स्वामी यद्यपि सीधे अघोरी पंथ से नहीं जुड़े थे, लेकिन उनकी साधना अघोर मार्ग के कई पहलुओं को दर्शाती थी। त्रैलंग स्वामी वाराणसी में रहते थे और अलौकिक शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे।
अघोर पूजा की प्रक्रिया
अघोर पूजा विशिष्ट साधनाओं और अनुष्ठानों का समावेश करती है। इसकी प्रक्रिया इस प्रकार है :
1. मंत्र जाप : अघोर मंत्रों का जाप साधक की ऊर्जा को जागृत करने के लिए किया जाता है। कुछ प्रमुख मंत्रों में ‘ॐ अघोरेभ्यो घोरेभ्यो घोर घोर तारायै नमः' शामिल है।
2. हवन एवं यज्ञ : विशेष तांत्रिक विधियों से हवन किया जाता है, जिसमें विशिष्ट जड़ी-बूटियाँ और आहुतियाँ डाली जाती हैं। इससे वातावरण शुद्ध होता है और आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
3. श्मशान साधना : कुछ साधक श्मशान में रहकर साधना करते हैं ताकि वे मृत्यु और जीवन के रहस्यों को समझ सकें। यह साधना भय को नष्ट करने और चेतना को जागृत करने का एक प्रभावी माध्यम मानी जाती है।
4. मांस, मदिरा एवं अन्य तांत्रिक प्रयोग : कुछ तांत्रिक क्रियाओं में पंचमकार (मांस, मछली, मदिरा, मुद्रा और मैथुन) का प्रयोग होता है, लेकिन इसका उद्देश्य आध्यात्मिक उत्थान होता है। यह प्रतीकात्मक रूप से सांसारिक बंधनों से मुक्ति का संकेत है।
5. भूत-प्रेत साधना : अघोरी साधु कभी-कभी आत्माओं और प्रेतों की उपासना करते हैं ताकि वे उन्हें नियंत्रित कर सकें और उनके माध्यम से गूढ़ ज्ञान प्राप्त कर सकें।
अघोर पंथ की सामाजिक धारणा
अघोरियों को समाज में रहस्यमय और कभी-कभी भयावह दृष्टि से देखा जाता है। उनकी जीवनशैली और साधना की विधियाँ साधारण समाज के नियमों से भिन्न होती हैं, जिसके कारण वे समाज से अलग दिखाई देते हैं। हालांकि, अघोरी साधु आध्यात्मिकता और आत्मज्ञान के गहरे स्तरों को प्राप्त करने की खोज में होते हैं। वे अपने जीवन को साधना और मानव कल्याण को समर्पित कर देते हैं।
अघोरी जीवन और रहस्य
क्या अघोरी इंसान का मांस खाते हैं?
यह बात सही है कि अघोरी इंसान का मांस खाते हैं, क्योंकि अघोरी को अपनी साधना करनी होती है। उसमें अमावस्या की रात शक्तियों को सिद्ध करना होता है, तब एक अघोर काली मां को मांस अर्पित करता है।
क्या अघोरियों का भी होता है परिवार?
अघोरियो की अनुष्ठान की पद्धति, रीति-रिवाज पूरी तरह से अलग होती है। एक अघोरी को ब्रह्मचर्य जीवन का पालन नहीं करना पड़ता। अघोरी अपने गुरु की आज्ञा से अपना विवाह किया था। अघोरी की पत्नी भी अघोर काली की साधना करती है। एक अघोरी अघोर साधना जनकल्याण के लिए करता है।
अघोरियों के पास कहां से आती है
मानव खोपड़ी?

अघोरी के पास मानव खोपड़ियां उन साधकों की होती हैं, जिन्होंने जीते जी अपना देह त्यागने के बाद अपनी खोपड़ी अघोरियों को अर्पित करने की इच्छा व्यक्त की थी। कुछ मामलों में, ऐसा भी माना जाता है कि ये खोपड़ियां उन लोगों की होती हैं, जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है। इन खोपड़ियों को अघोरी पवित्र मानते हैं और इनका उपयोग वे साधना में करते हैं।
नागा से कितने अलग होते हैं अघोरी?
नागा और अघोरी में काफी अंतर होता है। नागा साधु मुख्य रूप से वैदिक परंपरा के अंतर्गत आते हैं। वह शिव या विष्णु के उपासक होते हैं, जबकि अघोरी साधु तांत्रिक परंपरा का अनुशरण करते हैं। वे अघोर काली के उपासक होते हैं। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना, धर्म की रक्षा करना और मोक्ष की प्राप्ति है। वहीं, अघोरियों का उद्देश्य शरीर और संसार के पार जाकर स्वयं को परम सत्य से जोड़ना है। नागा साधु हिंदू धर्म की रक्षा के लिए परंपरागत रूप से योद्धा भी माने जाते हैं, जबकि अघोरी सामाजिक मान्यताओं को पार कर अघोर साधना करते हैं।
निष्कर्ष
अघोर पूजा एक गहन और रहस्यमयी साधना पद्धति है, जो मनुष्य को उसके भीतर की नकारात्मकताओं से मुक्त करके परम सत्य की प्राप्ति का मार्ग दिखाती है। यह साधना अपने असामान्य तरीकों के कारण अक्सर विवादों में रहती है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति है। अघोर पूजा हमें यह सिखाती है कि सभी भेदभाव और बंधनों से मुक्त होकर ही हम परम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं। यह साधना आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का एक मार्ग है, जो भय और मोह से मुक्त होकर वास्तविक सत्य की ओर ले जाती है। हालांकि इसे सामान्य समाज से अलग माना जाता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य अध्यात्मिक उत्थान और मानव कल्याण होता है। अघोरी साधक अपने कठोर तप और साधना के माध्यम से आत्मा की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और ब्रह्मांड की असीम शक्तियों से जुड़ते हैं।
Good article
ReplyDeleteGood article
ReplyDeleteWOW very nice information about Aghori Baba
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