कुम्भ मेला : भारत का एक अद्वितीय धार्मिक आयोजन

 

कुम्भ मेला भारत का एक विशाल और महत्वपूर्ण धार्मिक मेला है, जो हर बारहवें वर्ष आयोजित होता है। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे प्रमुख स्थलों पर एकत्र होकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। प्रत्येक कुम्भ के बीच छह वर्षों के अंतराल में प्रयाग में अर्धकुम्भ का आयोजन भी होता है। 2013 के कुंभ के बाद, 2019 में प्रयाग में अर्धकुम्भ मेला आयोजित हुआ था और अब 2025 में पुनः कुम्भ मेला आयोजित होने जा रहा है।
ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व
कुम्भ मेला ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है। यह मेला पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, जबकि मकर संक्रान्ति का दिन विशेष ज्योतिषीय पर्व होता है। इस दिन सूर्य और चन्द्रमा वृश्चिक राशि में तथा बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस संयोग को "कुम्भ स्नान-योग" कहा जाता है, और इसे आत्मा के उद्धार के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन उच्च लोकों के द्वार खुल जाते हैं, जिससे श्रद्धालु का आत्मिक उद्धार संभव हो पाता है। अतः इस दिन स्नान को स्वर्ग दर्शन जैसा माना जाता है।
‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ
कुम्भ शब्द का शाब्दिक अर्थ "घड़ा" या "सुराही" होता है, जो वैदिक ग्रंथों में अमृत या जल के प्रतीक के रूप में आता है। कुम्भ मेला का अर्थ होता है "अमरत्व का मेला", जिसमें श्रद्धालु अपने आत्मिक शुद्धि और उद्धार के लिए एकत्र होते हैं। यह शब्द ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में भी प्रकट हुआ है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
कुम्भ मेला विशेष रूप से बृहस्पति के कुम्भ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से जुड़ा होता है। यह ग्रहों की स्थिति हरिद्वार में स्थित हर की पौड़ी पर गंगा जल को औषधिकृत करती है, जिससे वह अमृतमय हो जाता है। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालु आत्मिक शुद्धि के लिए यहां स्नान करते हैं। अर्धकुम्भ के दौरान ग्रहों की स्थिति ध्यान और साधना के लिए अत्यंत अनुकूल होती है।
पौराणिक कथाएँ
कुम्भ मेले से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से प्रमुख कथा समुद्र मन्थन से अमृत प्राप्ति से संबंधित है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मन्थन से अमृत निकाला। अमृत कलश को लेकर इन्द्रपुत्र जयन्त आकाश में उड़ गए, और दैत्यों ने उनका पीछा किया। इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर गिर गईं। इन स्थानों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है, और यही कारण है कि ये स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखते हैं।
कुम्भ मेला को एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लोग अपनी आत्मिक शुद्धि के लिए एकत्र होते हैं और भक्ति, श्रद्धा, और आस्था का अनुभव करते हैं। यह मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा की एक अद्वितीय मिसाल भी प्रस्तुत करता है।


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